इस श्लोक में प्रह्रादं ग्राहयाम् आस पद महत्त्वपूर्ण है। ग्राहयाम् आस का शाब्दिक अर्थ होगा कि उन्होंने प्रह्लाद महाराज को धर्म, अर्थ तथा काम के मार्गों को स्वीकार कराने की चेष्टा की। सामान्यतया लोग इन्हीं तीनों में बँधे रहते हैं, उन्हें मुक्ति मार्ग में कोई रुचि नहीं रहती। प्रह्लाद महाराज काContinue Reading

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श्रीप्रह्राद उवाच मतिर्न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथोऽभिपद्येत गृहव्रतानाम् । अदान्तगोभिर्विशतां तमिस्रं पुन: पुनश्चर्वितचर्वणानाम् ॥ प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया: अपनी असंयमित इन्द्रियों के कारण जो लोग भौतिकतावादी जीवन के प्रति अत्यधिक लिह्रश्वत रहते हैं, वे नरकगामी होते हैं और बार-बार उसे चबाते हैं, जिसे पहले ही चबाया जा चुका है। ऐसेContinue Reading

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जैसा कि ईशोपनिषद में कहा गया है : ईशावास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥१॥   “ब्रह्मांड के भीतर जो कुछ भी चेतन या निर्जीव है, वह प्रभु द्वारा नियंत्रित और स्वामित्व में है। इसलिए व्यक्ति को केवल अपने लिए आवश्यक चीजों को स्वीकार करना चाहिए,Continue Reading

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