इस श्लोक में प्रह्रादं ग्राहयाम् आस पद महत्त्वपूर्ण है। ग्राहयाम् आस का शाब्दिक अर्थ होगा कि उन्होंने प्रह्लाद महाराज को धर्म, अर्थ तथा काम के मार्गों को स्वीकार कराने की चेष्टा की। सामान्यतया लोग इन्हीं तीनों में बँधे रहते हैं, उन्हें मुक्ति मार्ग में कोई रुचि नहीं रहती। प्रह्लाद महाराज का पिता तो केवल स्वर्ण तथा विषय-भोग में रुचि लेता था। हिरण्य शब्द का अर्थ है ”सोना और कशिपु का अर्थ है ”मुलायम गद्दे जिन पर लोग इन्द्रियतृह्रिश्वत का आनन्द लेते हैं, किन्तु प्रह्राद शब्द सूचक है उस व्यक्ति का जो ब्रह्म को जानने से सदैव प्रसन्न रहता है (ब्रह्मभूत प्रसन्नात्मा )। प्रह्लाद का अर्थ है प्रसन्नात्मा, अर्थात् सदैव प्रसन्न रहने वाला। प्रह्लाद भगवान् की पूजा करने में सदैव प्रसन्न रहता था, लेकिन हिरण्यकशिपु के आदेशों के अनुसार, शिक्षकगण उसे भौतिक बातों की शिक्षा देने में अधिक रुचि दिखाते थे।

भौतिकतावादी लोग सोचते हैं कि धर्म का पक्ष उनकी भौतिक दशा सुधारने के लिए है। वे मन्दिर में नाना प्रकार के देवताओं की पूजा करने जाते हैं जिससे उनकी भौतिक दशा सुधारने के लिए वर प्राह्रश्वत हो सके। वे साधु या तथाकथित स्वामी के पास इसलिए जाते हैं जिससे भौतिक ऐश्वर्य प्राह्रश्वत करने के लिए कोई सुगम विधि प्राह्रश्वत हो सके। ये तथाकथित साधु धर्म के नाम पर भौतिक ऐश्वर्य प्राह्रश्वत करने के सुगम मार्ग दिखलाकर भौतिकतावादियों की इन्द्रियों को तुष्ट करने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी वे कुछ तिलस्म या आशीर्वाद देते हैं। कभी-कभी वे उन्हें सोना बनाकर आकृष्ट करते हैं। तब वे अपने को ईश्वर घोषित करते हैं और ये मूर्ख भौतिकतावादी आॢथक लाभ के लिए उनकी ओर आकृष्ट होते हैं। इस ठगी के फलस्वरूप अन्य लोग धाॢमक विधि को ग्रहण करने में आनाकानी करते हैं और इसके बजाय वे सामान्य लोगों को भौतिक उन्नति के लिए कार्य करने का उपदेश देते हैं। यही विश्व भर में हो रहा है। आज से नहीं, अपितु अनन्त काल से लोग मोक्ष में रुचि नहीं लेते। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष—ये चार सिद्धान्त हैं। लोग भौतिक रूप से ऐश्वर्यवान क्यों बने?

इन्द्रियतृह्रिश्वत के लिए। अतएव लोग भौतिकता पूर्ण जीवनके इन्ही तीन मार्गों को अच्छा समझते हैं। किसी की रुचि मोक्ष में नहीं होती और भगवद्भक्ति तो मोक्ष से भी ऊपर है। अतएव भक्तियोग या कृष्णभावानामृत को समझना अत्यन्त कठिन है। इसकी व्याख्या आगे चलकर प्रह्लाद महाराज द्वारा की जाएगी। षण्ड तथा अमर्क नामक अध्यापकों ने प्रह्लाद महाराज को भौतिकतावादी जीवन-शैली अपनाने
के लिए फुसलाया, किन्तु उनका प्रयास व्यर्थ गया।

स्रोत : श्रीमद भागवतम 7.5.18 तात्पर्य

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