हाल ही में कुछ हिन्दू साधु-साध्वियों (आनंदमूर्ति माँ, मोरारी बापू, चित्रलेखाजी, चिन्मय बापू, इत्यादि) का अली मौला, हुसैन का कीर्तन करता हुआ अथवा अजान और भागवत कथा की तुलना करता हुआ विडियो वायरल हुआ।

एक तरफ बॉलीवुड के अधिकतर लोगों और तथाकथित बुद्धिजीवी सनातन धर्मं की निंदा करने में अपनी अभिव्यक्ति की आजादी समझते हैं तो दूसरी और कुछ साधु समाज को यह कहकर गुमराह कर रहे है की सभी धर्म एक है।

वेश्याएं तो केवल अपने परिवार के निर्वाह हेतु मज़बूरी में कुछ पर-पुरुषो के सामने जो बंद कमरे में छुपकर करती है वह काम आज के कुछ अभिनेता, स्क्रीन पर ही करोडो दर्शको के सामने भी अपने कपडे उतारकर नंगे होकर थोडा सा धन और प्रसिद्धि कमाने के लिए करते है। ऐसे वेश्याओं से भी बदतर जीवन जीने वाले बॉलीवुड के चरित्रहीन लोगो से धर्म का पालन अथवा उसकी रक्षा की क्या अपेक्षा रखें?

परन्तु साधु समाज से तो हम यह अपेक्षा नहीं रख सकते की वे कुछ भी जाने पढ़े बिना समाज को गुमराह करेंगे!

मेरा उन सब साधुओ से केवल एक ही प्रश्न है की क्या उन्होंने उनकी किताब पढ़ी है?
बिना तुलनात्मक अभ्यास के कोई कैसे इस निष्कर्ष पर आ सकता है की सबकुछ एक है?
और अगर हम आपको मानने को तैयार भी हो तो क्या आप दोनों पक्षों की तुलना दिखा सकते है?
क्या आप दोनों पक्षों की पुस्तकों के शब्दों के अर्थ और उनकी व्युत्पत्ति (Etymology) समझते है?
आप जिन नामो का कीर्तन करते है उनकी पहचान भी है आपको?
क्या आपने दोनों पक्षों के इतिहास को पढ़ा और तुलना कि है?

(लेख के विस्तार को ध्यान में रखते हुए मैं यहां वह तुलना नहीं दे रहा हूं और ना ही किसी की निंदा करना हमारा उद्देश्य है।)
अगर आप सत्य नहीं बोल सकते तो कोई बात नहीं परन्तु झूठ बोलकर लोगो को गुमराह करने का अधिकार आपको किसने दिया?
केवल झूठी और सस्ती प्रतिष्ठा बटोरने के लिए बिन-साम्प्रदायिकता का चोला ओढकर कोई कैसे भोलेभाले लोगो को गुमराह कर सकते है?
मोरारी बापू ने तो वामपंथियो की ही तरह कृष्ण और उनके परिवार पर ही अधर्म का आक्षेप कर दिया! मुझे तो उनकी ज्ञान की समझ पर ही संदेह होता है! रटी हुई रामायण/भागवत से लोगो का मनोरंजन करके धन कमाने वाले जब उनके आसपास कुछ भोलेभाले लोगो की भीड़ इकट्ठी हो जाती है तो वे अपने आप को बड़े ज्ञानी समझने लगते है और फिर वे कुछ भी अनाप-शनाप बकवास करने लगते है और उनके जैसे ही उनके अज्ञानी अनुयायी उनकी प्रशंसा करते है। लेकिन जब ज्ञान की चर्चा का आह्वान हो तो वे इसे अपनी-अपनी मन की श्रद्धा का विषय बताकर भाग निकलते है।

अगर मन की ही बात सत्य होती तो आज किताबो की संख्या अरबो में होती! परन्तु संसार लोगो के मन से नहीं चलता, अपितु सत्य से चलता है। और इसीलिए लोगो से हमारा निवेदन है की ऐसे मन की बात करने वाले अज्ञानी साधुओं से बचकर ही रहें।
जैसे सूर्य पूर्व से निकलता है यह किसी के मन की बात नहीं है अपितु सत्य है। उसी प्रकार परम भगवान एक सत्य है और किसी की कल्पना पर आश्रित नहीं है। और जिसको परम भगवान का परिचय होता है वे मन की बात नहीं अपितु ज्ञान की बात करते है। तो सच्चा साधु वही है जिसने भगवान का साक्षात्कार किया है और लोगो को सत्य ही बताता है, अपनी कल्पना नहीं।

इतिहास साक्षी है की अलग अलग समय और स्थान में भी रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, विष्णु स्वामी, चैतन्य महाप्रभु, वल्लभाचार्य, तुलसीदासजी, मीराबाई, नरसिंह मेहता, तुकाराम, प्रभुपादजी इत्यादि अनेको विद्वानों और भक्तो ने एक ही व्यक्ति का अनुभव/दर्शन किया है।

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कोई टिप्पणी नहीं

  1. ????
    यहां एक Link दे रहे हैं जो आपको स्पष्ट कर देगी साधु का विषय,,,
    https://youtu.be/DUxRL0UAfIE

    Reverce things???

    कृपया इस ? Video को पूरा देखें । आखिरी के 7-8 मिनट जरूर देखिए। ?

    आप अपने आप समज जाएंगे क्या करना चाहिए और किस प्रकार, कौन व्यक्ति क्या कर रहा है..! ?

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