इस श्लोक में प्रह्रादं ग्राहयाम् आस पद महत्त्वपूर्ण है। ग्राहयाम् आस का शाब्दिक अर्थ होगा कि उन्होंने प्रह्लाद महाराज को…
श्रीप्रह्राद उवाच मतिर्न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथोऽभिपद्येत गृहव्रतानाम् । अदान्तगोभिर्विशतां तमिस्रं पुन: पुनश्चर्वितचर्वणानाम् ॥ प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया:…
जैसा कि ईशोपनिषद में कहा गया है : ईशावास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥१॥ …