मनोरंजन से आप क्या समझते हैं ? थोड़ा सोच समझकर विचार कीजिये ! आज हर व्यक्ति गधों जैसे दिन-रात परिश्रम कर रहा है| हालांकि, सब जानते हैं, कि लोग 60-70 की आयु तक मृत्यु को गले लगा लेते हैं|

इतने कम समय में भी मनोरंजन आज हम सब के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है| अगर हम कुछ 100-200 वर्ष पहले जाएँ तो कुछ साहित्यिक पुस्तकें, सांस्कृतिक लोक-गीत, रामलीला आदि नाटक ही मनोरंजन के माध्यम कहलाते थे, परन्तु आधुनिक समय में मनोरंजन के क्षेत्र और उसकी सीमाओं ने अनेक माध्यमों का आविष्कार कर लिया है|

सारे लोग इसे प्रगति का नाम देकर गर्वित हो रहे हैं, अर्थात इन लोगों का मानना है कि पहले समय में दकियानूसी विचारधारा के पिछडे लोग सुखमय और मजेदार जीवन जीना जानते ही नहीं थे| उन सबसे मेरा प्रश्न है कि, क्या आजकल के लोग वाकई सुखी जीवन जी रहे हैं? अगर ऐसा है, तो आज इंसान इतना दुखी, चिंतित, तनावग्रस्त, विषादग्रस्त, मोहग्रस्त, रोगग्रस्त, निर्बल, भयभीत क्यों है? सत्य तो यह है, कि मनोरंजन की तकनीकी फेर बदल से जीवन सुखमय नहीं बन जाता है और यहाँ तो मनोरंजन की सारी परिभाषाओं ने विकृत रूप ले लिया है| आज मनोरंजन का माध्यम टेलीविज़न, इन्टरनेट, स्मार्टफोन, कंप्यूटर आदि हैं| यह अप्रत्यक्ष रूप से मनोरंजन दिलाने के प्रचलन को बढ़ावा दे रहा है और आज प्रचलित हो भी गया है, भले किसी ने आमने-सामने मंच में रामलीला नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को ना देखा हो| परन्तु सभी ने सिनेमा थिएटर-टॉकीज़ में जाकर फ़िल्में जरुर देखी होंगी| हर वर्ग, जाति, समाज, कुल, परंपरा के लोग सिनेमा देखते हैं| परन्तु आज इसके बहुत से दुष्प्रभाव भी बढ़ रहे हैं| इस समान अधिकार (RIGHT OF EQUALITY) की छूट में मनोरंजन की आड़ लेकर अश्लीलता, हिंसा, साम्प्रदायिकता, नास्तिकता और असत्य प्रचार को अति बढ़ावा मिल रहा है|

मनोरंजन के नाम पर आपकी बुद्धि में कचरा-कूड़ा डाला जा रहा है और मूर्ख बनकर हम पथ-भ्रष्ट हो रहे हैं| यह विषय आज इतना महत्त्वपूर्ण इसलिए है कि अधिकतर सामान्य से लेकर उच्च पद के व्यक्ति का जीवन इसी मनोरंजन पर आधारित है| हम में से हर व्यक्ति के एक आदर्श, एक नेता, एक गुरु होते हैं जिनका हम अनुसरण करते हैं और यह आप में से हर व्यक्ति जानता होगा कि आजकल लोगों का विश्वास और श्रद्धा पहले फिल्म के अभिनेता-अभिनेत्री, गायक, डांसर, कॉमेडियन, यू-ट्यूबर, क्रिकेटर, न्यूज़ एंकर, राजनीतिज्ञ बाद में शायद किसी के लिये बाद में दार्शनिक, वैज्ञानिक, महान ऋषिगण, विशेष सज्जन या साधू पुरुष, आदि मायने रखते हैं|

आज अगर कोई भी अभिनेता बिना टी-शर्ट या पेंट पहनकर चलता है तो, वह फैशन बन जाता है| अलग अलग तरीकों से बनी हेयर स्टाइल, अपने शरीर को इधर उधर घुमाकर प्रदर्शित कर देने से सारे युवाओं में उस स्टाइल या मूव का प्रचलन शुरू हो जाता है और फिर सब में प्रतिस्पर्धा चलती है कि कौन कितना स्टाइलिश है ?

इस्कॉन के संस्थापकाचार्य श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि, “आज के समाज में धूर्तों और मूर्खों के बीच यह प्रतिस्पर्धा चल रही है कि सबसे ज्यादा मूर्ख कौन है ? आज धूर्त असुर, नास्तिक, मायाग्रस्त, पागल बहुजन लोगों के आदर्श बन बैठे हैं| उनके अनुयायी उन्हीं की तरह गधों की दौड़ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं| सबसे बड़ा मूर्ख बनने के लिए सारे लोग कड़ा प्रयास करते हैं, तब जाकर उनमें से कोई महामूर्ख की पदवी हासिल करता है| फिर, उस महामूर्ख को नोबल पुरूस्कार देकर सम्मानित किया जाता है और उसे धूर्त अज्ञानी बने रहने के लिए बहुत प्रोत्साहन भी दिया जाता है|” आज समाज में देखें तो कुछ ऐसी प्रतिस्पर्धा हमें जनसामान्य में प्रचलित दिखाई पड़ती है| श्रील भक्ति विकास स्वामी महाराज भी अपनी पुस्तक ”भारतीय नवयुवकों को सन्देश” में सिनेमा जगत के बारे में लिखते हैं कि, ”सिनेमा ने भारतियों को पतन के कागार में डाल दिया और उसे अब विदेशी टीवी तथा इन्टरनेट के द्वारा तीव्र गति दी जा रही है|”

भारत में टेलीविज़न के शुरूआती दिनों में रामायण, महाभारत आदि सीरियलों को दिखाकर मनोरंजन इंडस्ट्री ने बहुजन को अपनी ओर आकर्षित किया था| लोग इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने घर में महामूर्ख डिब्बा (idiot box) लगवा लिया, क्षमा करें आपकी भाषा में उसे टेलीविज़न लगवाना कहते है| और फिर यहाँ से मनोरंजन इंडस्ट्री ने अपने पैर पसारना चालु कर दिया था और देखते ही देखते विभिन्न भाषा, विभिन्न पसंदीदा चैनलों की भरमार हो गयी और इंसान को इसकी बुरी लत लग गयी| आज अधिकतर व्यक्ति हर माह अपना पसंदीदा चैनल देखने के लिए पैसा देते हैं| परन्तु बात यहाँ पर भी नहीं रुकी, अश्लीलता, अभद्रता, नास्तिकता पूरी तरह से फैल नहीं पा रही था क्योंकि फिल्म सेंसर बोर्ड आड़े आ रहा था| अतएव इन्होनें वेब सीरीज पर काम चालु कर दिया, जहाँ कोई सेंसर बोर्ड की रोक टोक नहीं थी| इसे इन्टरनेट पर रिलीज़ कर दिया गया और अब इसे छोटे बच्चे से लेकर उम्रदराज बूढ़े भी देखकर अपने काम-वासना को बढ़ावा दे रहे हैं| यहाँ दिखाई गए अश्लीलता को सेक्स एजुकेशन का नाम दे दिया गया और उच्च पद के अधिकारी इससे सहमत भी हो गए| भारत में अब तो ऐसा कानून भी बना दिया गया है कि विवाह के पूर्व (Live in Relationship) और उसके पश्चात भी अवैध यौन सम्बन्ध रखने पर सबको खुली स्वतंत्रता है| सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सत्ता में बैठे राजनेता भी इस चीज़ का खुला समर्थन कर रहे हैं|

अभी एक नयी वेब सीरीज अमेज़न पर रिलीज़ की गयी है, जिसका नाम ”पाताल लोक” है| इसके नाम पर मत जाइए, यह पूरे मनगढ़ंत तरीके से सारे तथ्यों को प्रस्तुत करता है| इनके अनुसार धरती में एक स्वर्ग लोक है, जिसमे बड़े बड़े अमीर, बहुचर्चित लोग रहते हैं| उसी पृथ्वी में मानव लोक है और पाताल लोक है, जिसमे कीड़े (बुरे लोग) रहते हैं| सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वह सब कीड़े हिन्दू सनातन धर्म के हैं| उनकी परंपरा, जाति, कुल सब ढोंग है| इस वेब सीरीज में कुछ पात्र विशेषकर सनातन धर्म को लज्जित करने के लिए दिखाए गए हैं, जैसे –
1. इस वेब सीरीज़ में एक कुतिया का नाम सावित्री रखा गया है|
2. अप्रत्यक्ष रूप से योगी आदित्यनाथ से मिलते जुलते पात्र पर प्रहार किए गए हैं, उन्हें किसी और पात्र के माध्यम से भगवा कपड़ों में छुआछूत करता दिखाया गया है|
3. कोर्ट में यह साबित हो जाने के बाद भी कि जुनैद की हत्या ट्रेन की सीट के लिए एक झगड़े का परिणाम थी उसमे गौमांस खाने को लिंचिंग करार दिया जाता है|
4. शुक्ला नामक ब्राह्मण पात्र स्त्री संसर्ग/सेक्स/बलात्कार करते वक्त कान पर जनेऊ चढ़ाता है|
5. मन्दिर के पुजारी और महंत मन्दिर में मांस खाते हुए दिखाए गए हैं|
6. हिन्दू महिला को जब मुस्लिम औरत पानी देती है तो हिन्दू महिला पानी पीने से इनकार कर देती है|
7. हिन्दू भगवान बने पात्र को अपमानजनक तरीके से गिरता हुआ दिखाया जाता है|
8. सारे दुर्दान्त अपराधी, गुंडे शुक्ला, त्रिवेदी, द्विवेदी और त्यागी दिखाए गए हैं| (हिदुओं में यह जाति ब्राह्मण मानी जाती है)
9. एक मुस्लिम करेक्टर इमरान रूपी है जो निहायत टेलेंटेड हैं पुलिस में सबइंस्पेक्टर है और आईएएस की तैयारी कर रहा है हिन्दू उस पर छीटा-कशी करते हैं|
10. आर्यावर्त नामक देश मे मुसलामानों को पानी पीने तक की आज़ादी नहीं है, यह दिखाया गया है|
11. साधु-संत माँ-बहन की गलियां बकते दिखाए गए है इस पाताल लोक वेब सीरीज़ में|
12. मार काट के लिए गुंडे ‘चित्रकूट धाम’ से बुलाये जाते हैं|
13. अनेक बार भगवा कपड़ो में जय श्रीराम बोलते लोगों को गुंडागर्दी करते दिखाया जाता है|

हालांकि आज के समय में देखें तो वाकई सनातन सस्कृति का बहुत हनन हुआ है और धर्म के नाम पर लोग इन्द्रिय तृप्ति को बहुत बढ़ावा दे रहे हैं| परन्तु, हनन एकमात्र वैदिक संस्कृति नहीं, अपितु समस्त अलग धर्म की संस्कृति यथा इस्लाम, क्रिश्चियनिटी आदि धर्मों के लोगों का पतन हुआ है| उदाहरण के रूप में देखें तो येशु मसीहा ने बाइबिल में कहा था, ”तुम किसी की हत्या मत करो”| परन्तु आज उन्हीं के अनुयायिओं ने बहुत पशुओं के कत्लखाने खुलवाये हुए हैं| एक क्रिस्चियन के लिए गौ मांस, सूअर का मांस, कुत्ते का मांस खाना बहुत ही आम बात है| इस्लाम में देखें तो इन्होने अपने मनमाने ढंग से मोहम्मद प्रोफेट के आदेशों को अपने अनुसार परिवर्तित कर दिया| इन्होने भी अपनी संतुष्टि के लिए निर्दोष जानवरों को मारना शुरू किया, हलाला, तीन तलाक़, जैसी कुप्रथा को जन्म दिया| परन्तु, अगर वेब सीरीज के डायरेक्टर ऐसा कुछ बताएँगे तो उनकी दूकान नहीं चलेगी क्योंकि एक सनातन धर्म ही है जिसपर ऊँगली उठाने से आपकी गर्दन कटने से बची रहती है|
कुछ हिन्दू विशेष समाज संघ के लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि इस वेब सीरीज को इन्टरनेट से हटाया जाए| परन्तु, क्या एक को हटाने से हमारी संस्कृति को बल मिल जाएगा| जबकि, इन्टरनेट में इस प्रकार की अभद्रता भरी पड़ी है, आज एक को हटायेंगे तो कल चार-पांच ऐसे सीरीज या फ़िल्में रिलीज़ हो जायेंगी| अगर बहिष्कार करना है, तो किसी व्यक्ति विशेष पर क्यूँ ? अपनी विवेक बुद्धि से सोचें, क्या यह पूरी मनोरंजन इंडस्ट्री का लक्ष्य आपको सत्यता, नैतिकता, प्रामाणिकता दिखाना है ? इसका उत्तर है नहीं, नहीं, नहीं|

आपकी जानकारी के अनुसार बता दूं तो धर्म के चार स्तम्भ हैं – दया, पवित्रता, तपस्या, सत्यता| अपनी जीभ की संतुष्टि के लिए निर्दोष पशुओं का मांस भक्षण करने से दया समाप्त हो जाती है, जुआ-सट्टा खेलने से सत्यता ख़त्म हो जाती है, शराब-सिगरेट और अन्य नशीला पदार्थ लेने से तपस्या समाप्त हो जाती है, और अंततः अवैध स्त्री संग (विवाह के पूर्व यौन सम्बन्ध और उसके पश्चात अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी स्त्री के साथ यौन सम्बन्ध) करने से पवित्रता का नाश होता है| जब यह चार स्तंभों का नाश हो जाता है तो वह व्यक्ति दो पैर पर चलने वाला पशु कहलाता है| आज के परिपेक्ष्य में देखें तो आजकल हर फिल्मों, सीरियलों में खुले-आम नशा, मांसाहार, जुआ, यौन सम्बन्ध को अति बढ़ावा दिया जाता है|

फिल्म की शुरुआत में दिखाते हैं की शराब सिगरेट नहीं पीना चाहिए फिर पूरी फिल्म में हीरो बड़े मजे से सिगरेट पीकर धुंआ उड़ाता है, शराब पीकर डांस करता है, कैसिनो में जुआ खेलता है और हीरोइन छोटे कपडे पहनकर अपने खुले शरीर का दिखावा करती है, फिर हीरो-हीरोइन अवैध संग करते हैं| और अंत में हिन्दू समाज संघ के लोग यह सब देखकर सीटी-ताली बजाते हैं और थिएटर से बाहर निकलते हैं| क्या अब उनको इसमें कोई आपत्ति नहीं है ? नहीं, क्योंकि इसमें हिन्दू धर्म के बारे में कुछ गलत नहीं बताया| इसमें बताया गया है खाओ, पीयो और ऐश करो और ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा इसलिए खूब मज़े करो| ऐसे हिन्दू समाज संघ को मेरा सविनय अनुरोध है कि, ”किसी दूसरे के धर्म के लोगों में कमियाँ निकालने से आपका धर्म महान नहीं बनेगा।अपितु अपने लोगों को सनातन संस्कृति प्रचार प्रसार एवं उनकी कमियों को ढूँढ कर ठीक करना ही अपने धर्म को आगे बढ़ा सकता है।”

आज आवश्यकता है, हमारी संस्कृति को पुनः संचार करने की| जिस भारत भूमि में स्वयं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण, श्री राम अवतरण लेकर हम जैसे बद्ध जीवों का उद्धार करते हैं, जहाँ समस्त पवित्र नदियों, तीर्थों, ऋषियों, साधुओं, शुद्ध भक्तों का वास हो| जहां पवित्र भगवान के नाम का उच्चारण करने मात्र से ही आध्यात्मिक बल जागृत हो उठता है| क्या उस देश या भूमि में किसी निम्न तुच्छ मनोरंजन टीवी, सिनेमा आदि को महत्व भी देना चाहिए ? जैसा कि पहले मैंने आपको बताया की जब यह मनोरंजन सिनेमा जगत नहीं था, तब लोग सामूहिक रूप से रामलीला, कृष्णलीला, हरि भक्तों पर आधारित नाट्य-प्रस्तुति देखा करते थे| वह उन लोगों का मनोरंजन था, वह नाटक से बहुत सारी मूलभूत शिक्षाओं को सीखते| भगवान श्रीराम की लीलाओं से एक आज्ञाकारी पुत्र, मर्यादा पूर्ण जीवन, आदर्श पति, समर्पित शिष्य, आदर्श भाई, पिता आदि से प्रेरणा लेकर हर व्यक्ति अपना जीवन भगवान के प्रति शरणागत रहकर जीता| इसलिए इस्कॉन के आचार्य श्रील प्रभुपाद जी की इच्छा थी कि भक्तगण मिलकर भगवान और उनके भक्तों की लीलाओं पर आधारित नाट्य-प्रस्तुति करें| क्योंकि उन्हें पता था की आजकल लोगों के अन्दर धैर्य-शक्ति बहुत कम है, आज हर व्यक्ति अपने मन इन्द्रियों का गुलाम बन गया है| भगवत चर्चा, हरि कथा, प्रवचन वही अच्छे से सुन सकता है जो धैर्यवान हो अथवा जो धैर्यवान नहीं है, उसे नींद आने लगेगी या फिर प्रवचन में बताई गयी सारी बातें सिर के ऊपर जायेंगी| नाटक एक आकर्षक माध्यम है लोगों को भगवान की दिव्य लीलाओं से अवगत कराने और उनकी शरणागति लेने के लिए| परन्तु आजकल के लोगों के लिए यह बहुत सस्ती चीज़ है, वह बहुत सारा पैसा खर्च कर सिनेमा देखने के लिए आतुर हैं पर मुफ्त में राम नवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, जगन्नाथ रथयात्रा, गौर पूर्णिमा के अवसर पर नाटक देखने के लिए इनके पास तनिक भी फुर्सत नहीं है| इनके अनुसार रामलीला आदि सब बकवास है, समय की बर्बादी है|

इसलिए लेख का शीर्षक, ”रामलीला बकवास है” इसलिए रखा गया क्योंकि ऐसा कहने वाले लोग बहुत हैं| अतएव आप सबसे आशा है कि अपनी विवेक बुद्धि से इस गहनतम विषय के बारे में विचार-विमर्श कीजिये| सनातन धर्म को जानने के लिए किसी प्रमाणिक गुरु की शरण लीजिये, जो आपको भगवान का यथारूप सन्देश बताएँगे| भगवान के पवित्र नामों का जप कीजिये, ”हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’‘ जिससे आपको वास्तविक आनंद प्राप्त होगा|
हरे कृष्ण
(लेख में पायी गयी व्याकरण त्रुटी के लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ)

श्रील भक्तिविकास स्वामी जी की पुस्तक ”नवयुवकों को सन्देश” पढने व प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें

 

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