धर्म क्या है ? इस्कॉन के संस्थापकाचार्य कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि, “धर्म का अर्थ है जो पुर्ण पुरुषोत्तम भगवान द्वारा आदेश दिया जाता है । वही धर्म है । आप धर्म का निर्माण नहीं कर सकते । जैसे, आजकल इतने सारे धर्मों का निर्माण किया जा रहा है । वे धर्म नहीं हैं । धर्म का अर्थ है जो आदेश भगवान द्वारा दिए जाते हैं । वह धर्म है । जैसे कृष्ण ने कहा, “सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकम शरणम् व्रज” अर्थात- सारे धर्मों की परित्याग कर एकमात्र मेरी शरण में आओ ।(भगवद् गीता १८.६६)”

परंतु आज लोग धर्म को बहुत सस्ता टिकाऊ मान लेते हैं। अधिकतर लोगों की रूचि धर्म कार्य में नहीं होती है, वह बस ऊपरी तौर पर उसको मानने का दिखावा करते हैं। जिसके कारण धर्मांतरण जैसी घृणित चीजें फैल रही है। धर्मांतरण करने में प्रथम पुरस्कार क्रिश्चियनों को देना चाहिए। आज भारत में ऐसे कई चर्च, मिशनरी स्कूल हैं। जहां धर्मांतरण खुले आम होता है। वहाँ पर हिंदू भगवानों को काल्पनिक किरदार बताया जाता है और जीसस क्राइस्ट को एकमात्र भगवान। यह जिनका प्रचार कर रहे हैं, उन जीसस क्राइस्ट की शिक्षाओं का पालन नहीं करते। श्रील प्रभुपाद, एक चर्च के पादरी से वार्तालाप करते हैं और उनसे प्रश्न पूछते हैं कि जीसस क्राइस्ट अपने छठवें आदेश में कहते हैं कि, तुम किसी की हत्या मत करो! तो फिर यूरोप देशों में आप लोगों ने पशुओं के कत्लखाने क्यों खुलवाये हैं ? जहाँ हर दिन उनकी निर्ममता से हत्या की जा रही है। जैसे आप उस ईश्वर की संतान हैं, वैसे वह भी उस ईश्वर की संतान हैं। फिर आप उनमें इतना भेद क्यों करते हो? श्रील प्रभुपाद के इतने कठोर प्रश्नों का उत्तर उस पादरी के पास नहीं था। और तो इन प्रश्नों का उत्तर किसी क्रिश्चियन मिशनरी के पास नहीं होगा।

अभी इन लोगों ने क्रिश्चियन तथाकथित धर्म का प्रचार करने के लिए नयी तकनीक लगाई है। यहाँ भारत के अधिकतर गाँवों और छोटे-छोटे शहरों में लोग अंग्रेजी भाषा नहीं समझ पाते हैं, तो इन्होंने क्रिश्चियनिटी को हिंदू संस्करण के ढंग तौर तरीके से प्रस्तुत किया है। उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ के गोसाईगंज इलाके में एक शिवलर गाँव है। जहाँ इन्होंने प्रभु ईसा मसीह का मंदिर खोला है और वहाँ इनके पादरियों ने भगवा वस्त्र पहनकर यज्ञ महोत्सव आयोजन किया और खुद ही उसे संपन्न किया। इन बुद्धिजीवियों ने तो एक मंत्र की रचना भी कर दी है, “ऊँ यीशूखीष्टाय नमः”। अगर आप अनपढ़ हो, चर्च जाकर अंग्रेजी में प्रार्थना नहीं गा सकते। तो कोई बात नहीं। तथाकथित धर्म के नेता आप को हिंदू प्रारूप में क्रिश्चियनिटी को परोस रहे हैं। इनका उद्देश्य अपने धर्म के लोगों की जनसंख्या को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना है। परंतु इससे क्या उपलब्धि मिलेगी ? प्रभुपाद हर जगह ऐसे लोगों को मूढ़ और कपटी बोलते हैं। वह कहते हैं कि यह लोग व्यर्थ ही समाज में अशांति, क्लेश उत्पन्न कर रहे हैं।

आज समाज में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्हें अपने वास्तविक धर्म यानी भगवान कृष्ण की सेवा करना, यह जानना चाहिए। श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि आपका भले किसी भी धर्म के हों ; हिंदू, इस्लाम, क्रिश्चियन, अगर आपका उद्देश्य भगवान से प्रेम करना है तो आपका धर्म पूर्ण है। अथवा आपका धर्म तथाकथित है। भागवत में इसे केतव धर्म बताया गया है, अर्थात वह जो धर्म ईश्वर के बनाये गये नियमों के विरुद्ध कार्य करता है। जिस प्रकार एक कचरे को घर से फेंका जाता है, उसी तरह ऐसे तथाकथित धर्मों को फेंक देना अर्थात त्याग देना चाहिए।धर्म कोई मोहर या स्टाम्प नहीं है जो लगा देने से वह उस धर्म का हो जाएगा। ऐसे धर्मांतरित हुए लोग कुछ समय बाद असंतुष्ट होने पर दुसरा तथाकथित धर्म अपना लेते हैं क्योंकि उनका वास्तविक प्रयोजन भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्य करना नहीं है, अपितु अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करना है। अतएव हमें प्रामाणिक शास्त्र श्रीमद् भगवद्गीता, भागवतम्, रामायण पढ़कर जानना चाहिये कि वास्तविक धर्म क्या है ? तब जाकर हम असली तथा नकली धर्म को पहचान पाएँगे।

हरे कृष्ण!
जय श्रील प्रभुपाद

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  1. इस लेख का सूत्र बहुत स्पष्ट है। आज इस नये बनावटी धर्मों ने थोड़े-बहुत भी श्रद्धावान और सीधे-सरल लोगों को भ्रमित कर दिया है। या तो वह इस धोखे में फँस जाते हैं, नहीं तो वह श्रद्धाविहीन हो जाते हैं। साधारणतया, लोगों का इस्कॉन से प्रश्न होता है कि, “कृष्णभावनामृत” क्या यह नया शब्द है ? उनका लगभग प्रायः नये सिद्धांत या धर्म की ओर होता है।
    क्योंकि वह देख रहे हैं कि हर दिन नया भगवान और नया धर्म जन्म ले रहा है। फिर वह अन्ततः, “यतो मत ततो पथ” पर आकर रूक जाते हैं।

  2. इस लेख का सूत्र बहुत स्पष्ट है। आज इस नये बनावटी धर्मों ने थोड़े-बहुत भी श्रद्धावान और सीधे-सरल लोगों को भ्रमित कर दिया है। या तो वह इस धोखे में फँस जाते हैं, नहीं तो वह श्रद्धाविहीन हो जाते हैं। साधारणतया, लोगों का इस्कॉन से प्रश्न होता है कि, “कृष्णभावनामृत” क्या यह नया शब्द है ? उनका लगभग प्रायः नये सिद्धांत या धर्म की ओर होता है।
    क्योंकि वह देख रहे हैं कि हर दिन नया भगवान और नया धर्म जन्म ले रहा है। फिर वह अन्ततः, “यतो मत ततो पथ” पर आकर रूक जाते हैं।

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