भारत – भूमिते हेला मनुष्य – जन्म यार । जन्म सार्थक करि कर पर – उपकार । ” जिसने मनुष्य के रूप में भारतभूमि में जन्म लिया है , उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और फिर अन्य सभी लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए । ” इस श्लोक के तात्पर्य में प्रभुपाद ने भारतीयों की विशेष पवित्रता की व्याख्या की कि वे संकीर्तन समारोह में सम्मिलित होने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । दुर्भाग्य यह है कि भारत के वर्तमान नेता लोगों को ईश्वर से दूर लिए जा रहे हैं । और उन्हें धर्म और अधर्म के कार्यों में भेद करने और पुनर्जन्म में विश्वास करने से रोक रहे हैं । भारतीयों का यह विशेष दायित्व है कि वे संसार को वैदिक सिद्धान्तों में प्रशिक्षित करें ।

प्रभुपाद ने लिखा , ” यदि सभी भारतवासी भगवान् चैतन्य महाप्रभु के बताए मार्ग पर चलते , तो भारत संसार को एक अद्वितीय उपहार दे सकता था और इस तरह भारत अपने आपको महिमा – मण्डित कर सकता था । ” इसके अतिरिक्त , यह केवल भारतवासियों का ही नहीं , वरन् प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह कृष्णभावनामृत आन्दोलन में योगदान करे । “ प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से जानना चाहिए कि मानव समाज का सर्वश्रेष्ठ कल्याण कार्य यह है कि वह मानव में भगवत् – चेतना अर्थात् कृष्णभावनामृत जागरित करे । ”
(श्रील प्रभुपाद लीलामृत , प्रकरण 43, एक मंदिर हो)

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