भक्तिरसामृतसिन्धु में श्रील प्रभुपाद लिखते हैं-
एक भक्त को गणपति की पूजा प्रारम्भ करनी
चाहिए जो भक्ति के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हैं। इस सन्दर्भ में एक बार
एक भक्त ने श्रील प्रभुपाद से पूछा – श्रीलप्रभुपाद, यदि श्रीकृष्ण ही देवताओं को कुछ भी करने की योग्यता लेते हैं, भक्तिरसामृतसिन्धु में गणेशजी की पूजा करना क्यों बताया गया है?
श्रील प्रभुपाद समझाया-
कृष्णभक्त सभी की पूजा करता है। जैसे हम एक साधारण व्यक्ति की पूजा करते हैं यदि वह हमें कृष्ण की आराधना के लिए सुविधा प्रदान करता है। …गणपति भी कृष्ण भक्त हैं। उनकी पूजा की आवश्यकता नहीं है किन्तु कभी-कभी हम करते हैं। उदाहरण: गोपियाँ, वे दुर्गा देवी,
कात्यायनी की पूजा करती हैं। उन्हें उसकी आवश्यकता नहीं है किन्तु सामाजिक व्यवस्था वैसी है। किन्तु वे कात्यायनी माँ से प्रार्थना करती हैं, हमें ऐसा अवसर प्रदान कीजिए कि श्रीकृष्ण हमारे पति बन सकें। उद्देश्य श्री कृष्ण को प्राप्त करना होना चाहिए। साधारणतया लोग दुर्गा देवी की पूजा भौतिक लाभ के लिए करते हैं।धनं देही रूपं देही यशो देही, वे वस्तुएँ जिनकी हमें भौतिक जगत् में आवश्यकता होती है…
किन्तु गोपियाँ वे किसी भौतिक वस्तु के लिए नहीं जाती। वे श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए जाती
हैं। उसी प्रकार हम किसी भी देवता के पास जा सकते हैं। गणपति ही क्यों? सभी । किन्तु हमारी प्रार्थना होनी चाहिए, कृपया हमें श्री कृष्ण दीजिए।’ तब वह प्रार्थना सही है।” (१०
जनवरी १६७४, लॉस एंजेलिस में हुआ वार्तालाप। )

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