महादेव शिव की शिक्षा शिवरात्री पर विशेष
आज परम् वैष्णव महादेव शिवजी का दिवस है । आईये आज के दिन जानते है की देवो देव महादेव शिवजी का आदेश क्या है । महादेव जी किन की भक्ति से परसन्न होते है । उन्होंने समय समय पर इस का उलेख किया है । तो आईये जानते है की शिवजी का क्या आदेश है ।
श्रीमद्भागवत के स्कंध 4 अध्याय 24 से इन शिक्षाओं को लिया गया है ।
श्री रुद्र उवचा
यः परं रंहसः साक्षात्त्रिगुणाज्जीवसंज्ञितात् ।
भगवन्तं वासुदेवं प्रपन्नः स प्रियो हि मे ॥२८॥
शिवजी ने कहा
जो व्यक्ति प्रकृति तथा जीवात्मा में से प्रत्येक के अधिष्ठाता भगवान कृष्ण के शरणागत हैं, वह वास्तव में मुझे अत्यधिक प्रिये है ।
स्वधर्मनिष्ठः शतजन्मभिः पुमा
न्विरिञ्चतामेति ततः परं हि माम् ।
अव्याकृतं भागवतोऽथ वैष्णवं
पदं यथाहं विबुधाः कलात्यये ॥२९॥
उपरोक्त श्लोक में शिवजी ने कहा सो जन्म तक वर्णाश्रम धर्म को निभाने वाले को ब्रह्न का पद मिलता है
इससे अधिक योगये होने और शिवजी के पास जा सकता है “परंतु जो अनन्य भक्तिवश सीधे भगवान कृष्ण या विष्णु की शरण में जाता है वह तुरन्त बैकुण्ठ लोक जाता है । शिवजी इस बैकुण्ठ को संसार के संहार के बाद ही प्राप्त कर सकते है ।
अब श्री रुद्र भगवान वासुदेव की प्रथना कर रहे है
नमः पङ्कजनाभाय भूतसूक्ष्मेन्द्रियात्मने ।
वासुदेवाय शान्ताय कूटस्थाय स्वरोचिषे ॥३४॥
यंहा पर महादेव शिव जी ने कहा है कि आपकी नाभि से कमल पुष्प निकलता है । आप सृष्टि के उदगम है । आप इंद्रियों के नियामक है । आप सर्वय व्यापी वासुदेव है । आप परम् शांत है ( भृगु के द्वरा लात मार जाने पर भगवान विष्णु को क्रोध नही हुआ ) और स्वयम प्रकाशित होने के कारण आप छः प्रकार के विकारों से विचलित नही होते ( यंहा पर ध्यान देने वाली बात है कि शिवजी मोहिनी को देख कर विचलित हो गए थे और उनमें काम विकार आ गया था , इस लिए यंहा पर महादेव शिवजी श्री कृष्ण के समस्त गुणों का व्यख्यान कर उन्हें परम् भगवान सिद्ध करते है )
और 63 श्लोक में भगवान कृष्ण को ” त्वमेक आद्यः पुरुषः” यानी कि एक मात्र परम् पुरुष घोषित करते है ।
तुलसीदास जी की रामायण उत्तर भारत जा सर्वलोक प्रिये ग्रन्थ है इसके बालकाण्ड में पुष्टि होती है कि श्री राम परम् भगवान है । नीचे तुलसीदास जी की रामायण बालकाण्ड से कुछ अंश प्रस्तुत है ।
सती को शंका हुई कि शिवजी जो के जगत में ईश्वर के रूप में पूजे जाते है आखिर उन शिव जी ने राज पुत्र श्री राम को परमधाम और सचिदानंद कैसे कहाँ , सती जी शक किया और भगवान राम की परीक्षा के लिए चल पड़ी दोहा 49 चोपाई 4 बालकाण्ड तुलसीदास
अब आगे क्या हुआ वो स्वयं तुसलिदास जी से सुनिए
होइहिं सोई जो राम रचि रखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।। अस कहि लगे जपन हरिनामा । गई सती प्रभु सुखधामा।। दो 49 चो 4
जो कुछ राम ने रच रखा है वही होगा ।तर्क करके कौन शाखा बढावे ऐसा कह कर शिवजी श्री हरि का नाम जपने लगे । और सती जी वंहा गई जंहा सुख के धाम प्रभु रामचन्द्र जी आ रहे थे ।
लछिमन दीख उमकृत बेषा ।चकित भय भरम ह्रदय बिसेषा।। कहि न सकत कुछ अति गम्भीरा । प्रभु प्रभाऊ जानत मतिधीरा दो 42 चो 1
सतीजी के बनावटी वेश ( माता सीता के ) को देख कर लक्ष्मण जी चकित हो गए और उनके हृदए में बड़ा भ्रम हो गया । वे बहुत गम्भीर हो गए और कुछ कह नही सके क्योकि वो भगवान राम के प्रभाव को जानते थे
सती कपटु जानुउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी
सुमरित जाहि मिटइ अग्याना । सोई सर्बग्य रामु भगवाना । चो 2
सब कुछ जाननेवाले और सभी के हृदए हैं निवास करनेवाले प्रभु राम सती के इस कपट को जान गए क्योकि उनके स्मर्णनसे अज्ञान का विनाश हो जाता है क्योकि श्री रामचन्द्र सर्वज्ञे है ।
जोरि पानी प्रभु किन्ही प्रनामू । पिट्स समेत लीन्ह निज नामु ।। कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू । बिपिन अकेली फिरहूँ केहि हेतु । चो 4
प्रभु राम ने हाथ जोड़ कर सती को प्रणाम किया और पिता सहित अपना नाम बताया और फिर पूछा बृषकेतू (शिवजी) कहाँ है और आप वन में अकेली कैसे फिर रही है ?
श्री रामचंद्र जी के वचन सुन कर सती जी बहुत संकोच हुआ हुआ श्री राम जी ने फिर उन्हें अपना प्रभाव दिखया । दो 53 चो 2
देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाऊ एक ते एका ।। बंदत चरन करत प्रभु सेवा । बिबिध बेष देखे सब देवा । । चो 4
“सती जी ने अनेक शिव, ब्रह्मा , और विष्णु देखे जो एक से एक बढ़कर असीम प्रभाव वाले थे । उन्होंने देखा कि भांति- भांति के वेश धारण किये सभी देवी देवता श्रीरामचन्द्र जी की चरणवंदना और सेवा कर रहे थे । “
उन्हीने अनगनित अनुपम सती , ब्राह्मणी , और लक्ष्मी देखी । अनेको ब्रह्मा आदि देवता आदि देखे जो उनकी चरणवंदना कर रहे थे ।
उपरोक्त तुलसीदास जी के वणर्न से स्पष्ट होता है कि भगवान राम उर कृष्ण ही परम् भगबान है। और स्वयं महादेव शिवजी भी उनकी भक्ति करते है । हमे महादेव शिवजी के आदेशों को समझना होगा ।और परम् भगवान कृष्ण की शरण लेनी होगी तभी महादेव को प्रसन्न किया जा सकता है । भगवान कृष्ण की शरण के लिए परपरा से आये हुए गुरु की शरण लेनी होगी तभी इस मानव जीवन को सफल बनाया जा सकता है । श्रील प्रभूपाद एक ऐसे ही प्रमाणिक आचर्ये है । जिन्हीने विश्व भर में लोगो को परम् भगवान श्री कृष्ण के नामो का प्रचार किया है । आप सभ भी आज शिवरात्रि के दि अगर शिवजि को प्रसन्न करना चाहते है तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का जप करे ।
इस जप को सिर्फ एक दिन नही पूरे जीवन करना चाहिए क्योकि परम् वैष्णव शिव जी को प्रसन्न करने का एक मात्र उपाय यही है ।
This is the Final Word from Śrīla Prabhupāda — Unfiltered. Unchanged. Unchallenged. In this powerful…
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