क्या आपको इस लेख के शीर्षक पर गुस्सा नहीं आया? मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा था जब मैंने इसे एक समाचार पत्र के शीर्षक में और अन्य माध्यम से भी देखा था ।
पहले जो छप के बिका करते थे, वो आज कल बिक के छपा करते है अखबार। और यह है मिडिया के बिकाऊ होने का प्रमाण !
कुछ दिनो पहले मैंने एक समाचार पत्र में ऐसा शीर्षक देखा जिसमे लिखा था की रामायण और महाभारत के फिर से चलने पर बच्चों की आँखों को हानि हो रही है । और यह कोई एक समाचार-पत्र की बात नहीं है अपितु देश के लगभग सभी बड़े और छोटे, राष्ट्रिय अथवा स्थानीय, अंग्रेजी अथवा स्थानीय भाषाओ के समाचार-पत्रों में ऐसे लेख छपे! मैं हैरान और चिंतित हो गया!
वास्तव में सत्य बिलकुल इसके विपरीत है। दशकों से जो हमारी आँखों में मोतिया लगा हुआ है वह रामायण और महाभारत देखने से हट जाता है ।
कुछ दशकों पहले तक बच्चें और युवा अपने माता-पिता, गुरुजन और बड़ों का सम्मान करते थे और आज्ञाकारी हुआ करते थे । और फिर अचानक वे इसके एकदम विपरीत हो जातें हैं और माता-पिता, बड़ो एवं शिक्षको से दुर्व्यवहार करने लगते है। ऐसा क्या हुआ जो हमारे समाज में इन चीज़ों ने जगह ले ली?
किसी तरह मुझे रामायण की पुस्तक प्राप्त हुई थी । और मैं यह जानने के लिए उत्सुक हो गया कि इसमें क्या है । और जैसे ही मैंने इसे पढ़ना शुरू किया मैं अपने आप को इसे पूरा पढ़ने तक रोक नहीं सका, मैंने इसे सिर्फ ३ दिनों में पढ़ लिया। फिर मैंने महाभारत को भी पढ़ा। और तब मुझे अपने प्रश्नो का उत्तर भी मिल गया की क्यों आज की इस पीढ़ी का रुख बड़ों के प्रति बदल गया हैं। तब मैंने समझा की पहले लोग नियमित रूप से रामायण और महाभारत पढ़ते थे किन्तु आज उनकी जगह समाचार पत्र, टेलीविजिन, सिनेमा, वीडियोगेम्स, मोबाइल्स और अन्य चीज़ों ने ले ली हैं ।
जब हम रामायण और महाभारत पढ़ते हैं तो हम एक आज्ञाकारी बेटा, प्यारी माता, देखभाल करने वाला पिता, निस्वार्थ भाई, जिम्मेदार राजा, प्रजा जो अपने राजा को अपने पिता की तरह प्यार करती हैं, क्षत्रिय जो अपने प्रजा की सुरक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त होते हैं, शिक्षक और ब्राह्मण समाज के सभी वर्ग के लोगो को शिक्षा और मार्गदर्शन देने जैसे अपने सर्वोच्च काम के लिए वेतन नहीं लेना, लोग किसी भी तुच्छ जानवर का भी ख्याल रखते और बिना वजह उनको हनी भी नहीं पहुंचाते थे और ऐसी तो कई चीजों की परवाह करना सीखतें हैं।
लेकिन फिर इन अखबारों, टीवी, फिल्मों, सिनेमा, वीडियोगेम और मोबाइल्स ने हमें क्या दिया है? ज्यादातर वे सेक्स और हिंसा पर केंद्रित होते हैं, अश्लीलता, बेहूदापन और कई खतरनाक विचारों को बचपन से ही लोगों के कोमल दिमागों में भर देते है। सारे कार्यक्रम अथवा उनकी कहानियाँ निजी इन्द्रियभोग पर केन्द्रित होता है और वह “खरीदो, उधार लो, छीन लो, चोरी करो अथवा मार कर ले लो” के सिद्धांत पर आधारित होते है। अगर आप मौज-मस्ती को खरीद सकते हो तो ठीक है वरना आप उधार लो अथवा छीन लो अथवा चोरी करलो अथवा किसी की हत्या करके भी आप खुशियां प्राप्त कर लो। और आप ऐसा दूसरों के जीवन और संपत्ति की कीमत पर भी कर सकते हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने समाज में महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा कर लिया है, जहां से वे समाज के सामंजस्य को बिगाड़ने के लिए अपने ऐसे बकवास विचार फैला रहे हैं। और ऐसे कुछ लोग हो सकते हैं जो इन मूर्खों को प्रायोजित कर रहे हैं जो समाज में बुद्धिजीवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
और यही कारण है कि नई पीढ़ी माता-पिता, गुरुजनों और शिक्षकों की परवाह नहीं करती है!
सूचना और प्रसार के इन साधनों रूपी बुरे सौदे से सही उपयोग करके लाभ लेने के लिए कुछ प्रयास किए गए। और कुछ भले लोगों ने इस मीडिया के माध्यम से हमारे समाज को फिर से शिक्षित करने के लिए रामायण और महाभारत के हमारे कालातीत ज्ञान पर आधारित फिल्में या टीवी धारावाहिक बनाए।
और हाल के कोरोना वायरस विश्व-व्यापी महामारी के दिनों में पुरे देश में लॉकडाउन के समय सरकार ने लोगों का मनोरंजन करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए रामायण और महाभारत धारावाहिकों को फिर से चलाने का निर्णय किया, तब ये विशेष मत वाले लोग बौखला गए।
उन्होंने इन महाकाव्यों के प्रसारण को रोकने के लिए कई तरह से तर्क दिए और रोकने का पूरा प्रयास किया। उनका एक तर्क यह था कि यह रामायण, महाभारत दिखाने समय नहीं बल्कि भोजन वगैरह बांटने का समय है।
हालांकि सरकार सभी के लिए भोजन और चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने के लिए पूरी कोशिश कर रही थी और लोगों को उनके खाली समय में मनोरंजन के साथ उनकी नैतिक शिक्षा का व्यापक लाभ उठाने की भी कोशिश कर रही थी। और सभी उम्र के लोग भी रामायण और महाभारत देखकर खुश थे।
लेकिन जब ये उदारवादी और तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों को रामायण और महाभारत देखने से नहीं रोक पाए, तो वे टीवी पर रामायण और महाभारत न देखने का एक और मूर्खतापूर्ण कारण लेकर आए। वे अब तर्क देते हैं कि केवल इन धारावाहिकों को देखने से बच्चों की आंखों में चोटें आई हैं! हा हा हा! कुछ भी और देखने से आँख की कोई समस्या नहीं होती है लेकिन विशेष रूप से रामायण और महाभारत से होती हैं।
और मुझे यकीन है कि अगर हम इन बेवकूफों को रामायण और महाभारत देखने के कारण हुई आंखों की चोटों के समाधान के बारे में पूछेंगे तो वे बेशर्मी से कहेंगे की कामोद्दीपक मूवी (पोर्नोग्राफी) देखना चाहिए । पोर्नोग्राफी देखने से बच्चों और बाकी सभी की आंखों की रोशनी सुधर जाएगी । वाह!
भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,
यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ।। १८.३१ ।।
हे पृथापुत्र! जो बुद्धि धर्म तथा अधर्म, करणीय तथा अकरणीय कर्म में भेद नहीं कर पाती, वह राजसी है ।
अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता ।
सर्वार्थान्विपरीतांश्र्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ।। १८.३२ ।।
जो बुद्धि मोह तथा अंधकार के वशीभूत होकर अधर्म को धर्म तथा धर्म को अधर्म मानती है और सदैव विपरीत दिशा में प्रयत्न करती है, वह तामसी है।
भारत में, किसी भी अच्छी चीज को खराब दिखाने का यह एक फैशन बन गया है, और जो वास्तव में, समाज के लिए अच्छा है उसे सभी उदारवादी इसे जनता तक नहीं पहुंचने देंगे। क्योंकि अगर यह जन-जन तक पहुँच जाता है तो कई दशकों तक लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ये बदमाश बेनकाब हो जायेंगे। उनके सच्चे इरादे जनता को पता लग जायेंगे और उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा और वे समाज को अस्थिर करके धन कमाने का अथवा सत्ता में बने रहने का अपना घिनोना काम खो देंगे और फिर उन्हें जनता द्वारा दंडित होने का डर भी है।
हमारे लिए यह तय करने का बिलकुल सही समय है कि हम क्या चाहते हैं और हम अपने बच्चों को क्या देना चाहते हैं? यह उनके जीवन की शुरुआत से रामायण, महाभारत, भगवद गीता और श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्रदान करने का समय है ताकि वे नैतिक मूल्यों (संस्कार) को सीखें और आत्मसात करें और माता-पिता और बड़ों के प्रति अच्छे और सम्मानजनक बनें। साथ ही, वे मानव जीवन के वास्तविक अर्थ को जान पाएंगे और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना कर पाएंगे और उस प्रकार से उनका जीवन भी सुखमय होगा । अन्यथा ये बुद्धूजीवी (तथाकथित बुद्धिजीवी) निश्चित रूप से उन्हें फसा लेंगे और बिगाड़ देंगे।
इसलिए उनका मुकाबला करने के लिए हमें ऐसे समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, फिल्मों को पूरी तरह से अस्वीकार करने की आवश्यकता है। सबसे अच्छा बचाव इन झूठों और ढोंगियों के संपर्क में नहीं आना है और उनका पूरी तरह से बहिष्कार करना है।
किसी ने मुझे कहा की वर्तमान पत्रों के ये लेख तो रामायण और महाभारत के पात्रों की नकल तथा धनुष और बाण के साथ खेलने के कारण बच्चों की आंखों की चोटों के बारे में है।
लेकिन अगर हम इस तर्क को स्वीकार करते हैं तो बच्चे फिल्मों और टीवी से बंदूक से खेलना, शराब पीना, धूम्रपान करना, अश्लीलता, सेक्स, कामुकता, बलात्कार, जुआ, हत्या, हिंसा, तेज ड्राइविंग, बड़ो की अवज्ञा और उनसे दुर्व्यवहार, छेडछाड करना, चोरी, लूट, खिस्सा चोरी, और कई और चीजें सीखते है।
और इसलिए बच्चों को किसी भी फिल्म या टीवी कार्यक्रम को देखना बंद कर देना चाहिए।
लेकिन उदारवादी लोग इन दुष्प्रभावो को अपने लेखन या भाषणों में उजागर नहीं करेंगे क्योंकि यही तो उनकी आजीविका का साधन हैं। लेकिन वे इस बात पर विशेष प्रकाश डालेंगे कि रामायण और महाभारत देखना कितना हानिकारक है ।
तथ्य यह है कि अगर लोग रामायण और महाभारत देखते हैं तो इन दुष्टों का व्यवसाय जो सेक्स और हिंसा पर आधारित है और जो कुछ भी समाज के लिए अच्छा है, उसका उपहास और आलोचना करना है, वह बंद हो जाएगा।
लेकिन क्या आपने कभी उन्हें किसी अन्य श्रद्धा की पुस्तक को पढ़ने के घातक परिणामों के बारे में बोलने की हिम्मत दिखाते हुए देखा है, जब की ये अधिकांश देशों की सरकारों के लिए वास्तविक और प्रमुख चिंताएं हैं।
वे चुनिंदा रूप से वैदिक धर्म को लक्षित कर रहे हैं! क्योंकि यह सहिष्णु होने के कारण आसन शिकार है।
महत्वपूर्ण सुचना: लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो भविष्य में अपने बच्चों को दोष न देना की वे आपसे उचित या सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं। सही शिक्षा (संस्कार) प्रदान करना माता-पिता का कर्तव्य है।
निवेदन: तो, अगर आपको लगता है कि हम, भगवान राम और कृष्ण के भक्तों को इन आधुनिक रावण और कंस को उजागर करना है, तो कृपया इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें या आगे बढ़ाएं या कम से कम आप इन राक्षसों को चुनौती देने के लिए खुद लेख लिखें।
कृपया इस संदेश को समाज के कल्याण के लिए सभी से साँझा करें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद् ।
सुंदरपुरा गांव वडोदरा शहर से 8 से 9 किलोमीटर दूर है । अगर आप जंबूवा…
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