आधुनिक सभ्यता का विषय हैं आहार, निद्रा, भय और मैथुन या इंद्र तृप्ति। आधुनिक सभ्यता में कोई भी अपनी वास्तविक स्थिति को नहीं जानता और ना ही यह समझता हैं कि उसके लिए क्या सही हैं। क्योंकि लोग असामान्य तरह का व्यवहार करते हैं, उन्हें इसका कोई अनुमान नहीं कि क्या सही हैं, आधुनिक युग के लोग अपनी जिंदगी को लेकर पूरी तरह से अंधकार में हैं और यह बहुत भयावह स्थिति हैं। लोग इंद्रिय तृप्ति के लिए अपनी ज्यादातर ऊर्जा खर्च करते हैं। लोगों को इसका कोई अनुमान नहीं कि अगले जीवन में क्या होने वाला हैं। अगला जीवन होता हैं किंतु मूर्ख लोगों को इसका अनुमान नहीं। हमारा वर्तमान जीवन ही अगले जन्म की तैयारी हैं। किंतु मूर्ख इसको नहीं जानते।
दुर्भाग्य से आधुनिक सभ्यता में भगवान के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं और भगवान को खुश करने की तो बात ही क्या करें। लोग केवल अपने भौतिक कार्यों में व्यस्त हैं। इसीलिए सभी बुरे कर्म करते हैं और भुगतते हैं। वे लोग अंधों का अंधा नेता की तरह काम करते हैं इसलिए नेता और प्रजा अपने बुरे कर्मों के कारण कष्ट झेलते हैं। जो व्यक्ति भगवान को नहीं जानता और ना ही जानने का प्रयास करता हैं वह जानवर हैं क्योंकि जानवर नहीं जानते कि भगवान क्या हैं। दुर्भाग्य से आजकल लोग खुले तौर पर बोलते हैं कि कोई भगवान नहीं हैं और कुछ बोलते हैं कि अगर भगवान था तो वह मर चुका और इसी तरह की बातें करते हैं। उन्होंने तथाकथित उन्नत सभ्यता स्थापित की हैं, जिसमें बहुत बड़ी-बड़ी इमारतें हैं, किंतु वे यह भूल गए हैं कि इन सब का आधार भगवान कृष्ण हैं। समाज की यह स्थिति बहुत ही अनिश्चित हैं। अगर आप सरकार के किसी नियम की अवहेलना करते हो तो आप मुश्किल में पड़ जाते हो। इसी तरह अगर आप भगवान के बनाए नियमों की अवहेलना करते हो तो आपको कष्ट उठाना पड़ेगा। एक नास्तिक समाज कभी भी खुश नहीं रह सकता। यह एक तथ्य हैं। आज हम प्रौद्योगिकी में उन्नत हैं किंतु ना हमारे पास सांस लेने को साफ हवा हैं, ना ही पीने को स्वच्छ पानी और ना ही पौष्टिक भोजन। हवा पानी और भोजन को तरह-तरह के प्रदूषण से दूषित कर दिया गया हैं। लोग मिलावटी भोजन, पानी और दूध बेच रहे हैं उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि इससे किसी की सेहत पर क्या फर्क पड़ेगा। इस तरह की प्रवृति से हम समाज को कहां लेकर जा रहे हैं? दूसरे शब्दों में कहूं तो लोग एक दूसरे का गला काट रहे हैं वह भी थोड़े से धन लाभ के लिए। आधुनिक शिक्षा के बारे में क्या कहें? क्या हम यह नहीं देख पा रहे कि आधुनिक शिक्षा कैसे सिर्फ पैसा कमाने का व्यापार बन गया हैं? क्या हम आधुनिक शिक्षा संस्थानों में मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य क्या हैं, यह सीखते हैं? और इसका उत्तर हैं। नहीं, हम यह नहीं सीख रहे हैं। हम वहां सिर्फ एक देश या समाज की आर्थिक उन्नति कैसे हो यह सीख रहे हैं। कुछ तथाकथित आधुनिक शिक्षकों का कहना हैं कि शिक्षा का मतलब हैं जिंदगी की मुसीबतों को हल करना। किंतु वास्तविकता यह हैं कि वह अपने विद्यार्थियों को कैसे इंद्रिय तृप्ति ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जाए यह सिखा रहे हैं। जिसके चलते वह उन्हें और ज्यादा से ज्यादा नीचे गिरा रहे हैं। वास्तव में स्थिति यह हैं कि ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति ही भगवान में विश्वास नहीं रख रहा हैं, ना ही वह भगवान के बनाए नियमों को मानता हैं, ना ही वह पाप और पुण्य कर्मों को जानता हैं। इस प्रकार आधुनिक शिक्षा लोगों को केवल मनुष्य से जानवर बना रही हैं। अगर हमारी मनुष्यों को दी जाने वाली शिक्षा में यह सम्मिलित नहीं हैं कि वह क्या हैं, वह यह शरीर हैं या आत्मा तो वह एक गधे से बढ़कर नहीं हैं। हमारा वर्तमान जीवन ही अगले जन्म की तैयारी हैं। पर हम यह नहीं जानते आधुनिक शिक्षा संस्थान इस सरल सी बात को लेकर भी अंधकार में हैं। हमारे जीवन के वास्तविक दुख क्या हैं? हम यह नहीं समझते। आधुनिक शिक्षा जीवन के वास्तविक दुखों पर कभी प्रकाश नहीं डालत।दुर्भाग्य से आधुनिक शिक्षा केवल बाहरी दिखावा, इस शरीर और पहनावे पर ही दबाव देती हैं। वह यह नहीं समझते कि यह शरीर रूपी कपड़ा किस ने पहना हैं, आधुनिक शिक्षा से ना ही हम यह समझते हैं कि आत्मा क्या हैं, यह शरीर क्या हैं और किस तरह से आत्मा का स्थानांतरण होता हैं। सभी मंदबुद्धि हैं। यद्यपि मनुष्य के लिए यही सबसे महत्वपूर्ण विज्ञान हैं। आधुनिक शिक्षा में इस शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। नहीं, यह वास्तविक शिक्षा नहीं हैं। आधुनिक शिक्षा वास्तव में दस्तकारी हैं। अगर आप एक अच्छी मोटर कार बना सकते हैं, तो यह एक दस्तकारी हैं। यह एक लोहार का काम हैं। यह ज्ञान नहीं हैं। ज्ञान अलग होता हैं। इसलिए आधुनिक शिक्षा प्रणाली कुतें तैयार करती हैं। जब तक उसे एक अच्छा गुरु नहीं मिल जाता वह सुखी नहीं हो सकता। इसलिए आधुनिक शिक्षा वास्तविक ज्ञान नहीं हैं। वास्तविक ज्ञान आरंभ होता हैं भगवत गीता से ।
श्रील प्रभुपाद: एक अच्छा आदमी कैसे बना जा सकता हैं यह भगवत गीता में बहुत विस्तार से बताया गया हैं
दैवी संपद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता (भगवत गीता -16.5)
तो अगर आप दिव्य संपत्ति से संपन्न हैं, तो आप मुक्त जीव हैं। और अगर आप आसुरी गुणों से संपन्न हैं तो, अधिक से अधिक उलझे रहोगे। दुर्भाग्य से आधुनिक सभ्यता मुक्ति और भौतिक बंधन को नहीं जानते। वह इतने अनजान हैं कि इसे नहीं समझते। मान लीजिए मैं आपसे पूछता हूं कि मुक्ति क्या हैं, क्या आप बता सकते हैं? [नहीं] और अगर मैं आप से यह पूछो कि भौतिक बंधन क्या हैं, तो क्या आप बता पाएंगे? [फिर से कोई उत्तर नहीं] ये शब्द मुक्ति और भौतिक बंधन सब हमारे वैदिक ग्रंथों में हैं। किंतु हम अभागे यह नहीं जानते, हम इतने अबोध और मुर्ख हैं कि फिर भी हमें अपने आधुनिक ज्ञान पर गर्व हैं।
इस संसार में उपलब्धि के अनेक प्रकार हैं, किंतु इन सबों में ज्ञान की उपलब्धि सर्वोपरि मानी जाती हैं। क्योंकि ज्ञान की नौका में आरूढ़ होकर ही अज्ञान के सागर को पार किया जा सकता हैं अन्यथा यह सागर दुस्तर हैं। (श्रीमद् भागवतम् 4.24.75)
दिव्य ज्ञान का यह अद्भुत प्रभाव क्यों हैं? इसके कम से कम चार कारण हैं: उसमें से पहला हैं, दिव्य ज्ञान का स्तोत्र भगवान स्वयं श्री कृष्ण हैं। सांसारिक ज्ञान लोगों के सीमित और दोषपूर्ण सांसारिक दिमाग का उत्पाद हैं। दूसरा, ज्ञान के माध्यम से कृष्णा हमारे भौतिक और आध्यात्मिक लाभ हेतु हम पर दया करते हैं। सांसारिक ज्ञान जो कि संसारिक उन्नति, मनोरंजन, शीर्षक और विकर्षण के लिए हैं,जो हमें अंततः लाभ नहीं पहुंचाता। तीसरा, वास्तविक ज्ञान के द्वारा हम सच्चाई और माया में भेद कर सकते हैं। जो हमें सच्चाई से जोड़ता हैं और माया से अलग करता हैं। सांसारिक ज्ञान हमें अंधकार की ओर धकेलता हैं और हमारा उसके साथ लगाव बढ़ाता हैं। और चौथा वास्तविक ज्ञान का परिणाम हैं, शुद्ध भक्ति जो भक्तों को भौतिक दुखों से मुक्त करता हैं और उन्हें सर्वोच्च प्रेम भगवत्प्रेम और उनकी रचनाओं से प्रेम करने में सक्षम बनाता हैं। सांसारिक ज्ञान के द्वारा हम इस दुनिया के दुखों को कम नहीं कर सकते और यह दुख हैं जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि और ना ही सांसारिक ज्ञान से भगवत्प्रेम को जन्म दे सकते हैं।
दिव्य ज्ञान का परिणाम कल्पनाओं को खारिज करता हैं। भगवत गीता बताती हैं कि ऐसे यज्ञ में कारण का फल निश्चित ही ब्रह्मा में विलीन हो जाता हैं और मनुष्य को कोई भौतिक फल नहीं भोगना पड़ता(भगवत गीता 4.19,23), इससे माया का विनाश होता हैं(4.25), इस संसार में दिव्य ज्ञान के समान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं हैं और यही ज्ञान हमारी मुक्ति का कारण बनता हैं(4.38), जो इस जो इसे प्राप्त करता हैं वह तुरंत आध्यात्मिक शांति प्राप्त करता हैं(4.39), यह एक शस्त्र के समान हैं जो हमारी दुनिया में अज्ञान के कारण संशय उठे हैं उन्हें ज्ञान रूपी शस्त्र से काट डालता हैं(4.42), और इसी ज्ञान की कमी से हम इस भौतिक शरीर में कष्ट भोगते हैं(5.14, तात्पर्य).
प्रभुपाद बताते हैं कि “यदि गुरु स्वीकार कर लिया जाए तो पदार्थ तथा आत्मा के अंतर को समझा जा सकता हैं और वही अग्रिम आत्मसाक्षात्कार के लिए शुभारंभ बन जाता हैं। गुरु अनेक प्रकार के उपदेशों से अपने शिष्यों को देहात्मबुद्धि से मुक्त होने की शिक्षा देता हैं।“(भगवत गीता 13.35, तात्पर्य)
“शिक्षा का उद्देश्य श्रीकृष्ण और उनकी भक्ति को समझना हैं। यदि कोई ऐसा नहीं करता तो उनकी शिक्षा झूठी हैं।“ (चैतन्य-भागवत, आदि 12.49, श्रीमद-भागवतम 4.29.50 तात्पर्य में उद्धृत) या कृष्ण के शब्दों में,” यह ज्ञान सब विधाओं का राजा हैं जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय हैं। यह परम शुद्ध हैं और क्योंकि यह आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति कराने वाला हैं, अतः यह धर्म का सिद्धांत हैं। यह अविनाशी हैं और अत्यंत सुख पूर्वक संपन्न किया जाता हैं।
अतः यदि वास्तविक सभ्यता में रहना चाहते हैं तो हमें तथाकथित आधुनिक सभ्यता से बाहर आना होगा और हमें वैदिक ज्ञान को स्वीकार करना होगा। हमें नियंत्रक बनने की मानसिकता से बाहर निकलना होगा (करता अहम इति मन्यते) और हरी-गुरु-वैष्णव का दास बनना होगा। हमें कृष्ण भगवान को हमारे जीवन का केंद्र बनाकर साधु, गुरु और शास्त्रों के निर्देशन में भगवान को खुश करने का प्रयास करना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा ।
हरे कृष्णा !